रील
रील
रील चलती रही फ़िल्म बनती रही
दोनों ने निभाया ऐसा किरदार
की वाह वाही भी खूब मिलती रही
प्रेम और प्रेमा का प्यार झलका है
दिनों बाद मिलने पे मन हल्का है
गुनगुना रहे पंछी की तरह है
भविष्य की राह भी आसान नहीं है
खूंखार है भाई उसका, आँखों पे
चड़के बोले खून जिसका..
क्या देगा वो सम्मान प्रेम से
प्रेम को,
या लेगा छीन चैन दोनों का...
न खिलने देगा फूल बगिया के
या पंछी उड़ जायेंगे दूर गगन में
महकाने को घर आँगन अपना
देखा है जो प्रेम और प्रेमा ने सपना
भागकर डरकर निकल चले राह
देखो बिडंबना कैसी ढूंढ लिया
निर्दयी ने बनकर गज को ग्राह
जीवन में रंग मंच निराले ये
फ़िल्मी है पर सबक देती है
फ़िल्म चलती रही रील बनती रही
पर बूझ गए दीपक से दोनों
पर प्रकाश अभी तक फैला है
प्रकाश को दे जन्म वे
अमृत सोपान पी गए..