लहू का संघर्ष
लहू का संघर्ष
लहू मेरे जिगर का तेरे लिए है।
ओ वतन मेरा रोम रोम तेरे लिए है।।
मृत्यु को प्राप्त हुआ जो ,
सौभ्याग का ये अवसर मेरे लिए है।
ओ वतन मेरा रोम रोम तेरे लिये है।।
हिन्द की सीमा में कदम जो रखे अरि।
न होगा फिर कोई मुझसा काल रूप बैरि ।।
रक्त बहाने को आतुर मैं दुश्मनो की खैर नही।
सिर कटे लगे गोली इसकी मुझे परवाह नही।।
दम रखूं जबतक देह में, लड़ता ही मैं जाऊ।
सीमा से अपने शत्रु को मार मार भगाऊ।।
भरत देश इसका सीश न झुकने पाये।
एक एक कतरा खून का मेरे देश को भाये।।
फिर चाहे हम रहे न रहे पर लाल रंग ,
ये वीर गाथा लिख जाए।
आओ मिलकर देश की खातिर,
अपनी अपनी जान लगाए।।