दिलों की महफ़िल ही सजाएं बैठे
दिलों की महफ़िल ही सजाएं बैठे
आप हर वक्त यूं नफ़रतों को क्यों सजाएं बैठे सदा
हम तो अब दिलों की महफ़िल ही सजाएं बैठे सदा
क्यों नफ़रत की आग में दिलों को जलाएं बैठे सदा
हम तो अब मुहब्बत की मशाल ही जलाएं बैठे सदा
चंद दिनों की ज़िंदगी में क्यों मुझे सताएं बैठे सदा
सारे शिकवे-गिले भूलकर हम गले लगाएं बैठे सदा
दिल के दरवाजे मुहब्बत के लिए खुलवाएं बैठे सदा
इश्क करनेवालों को हम दिल से अपनाएं बैठे सदा
हितेंद्र जैसे लोग ही प्यार के गीत गुनगुनाएं बैठे सदा
नफरतों को मिटा मुहब्बत दिलों में सजाएं बैठे सदा।