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Hitendra Brahmbhatt

Others

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Hitendra Brahmbhatt

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दिल में अल्फाज़ रखता हूं.

दिल में अल्फाज़ रखता हूं.

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आईने के सामने भी मैं एक और आईना रखता हूं

ख़ुद का खुद की नज़रों में मुसलसल राब्ता रखता हूं


हैरत क्यों हैं आईने के जैसा ईमान बखूबी रखता हूं

नफरतों को मिटाकर मोहब्बत वाली खूबी रखता हूं


दिल में रंजिशों का कोई भी न सिलसिला रखता हूं

कट्टरवादी सोच वालों से ही थोड़ा फासला रखता हूं


किसी भी मजहब से न कोई शिकवा गिला रखता हूं

हर मज़हब के लिए घर का दरवाज़ा खुला रखता हूं


दिल की अलमारी में आप लोगों का प्यार रखता हूं

आपकी मुहब्बत की यादें और अच्छे यार रखता हूं


घर में मुहब्बत की खुशबुएं और किताब रखता हूं

हाथों में मेरे क़लम और दिल में अल्फाज़ रखता हूं



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