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Shilpi Goel

Abstract Drama Inspirational

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Shilpi Goel

Abstract Drama Inspirational

सन्नाटा

सन्नाटा

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कितना अजीब नजारा है यहाँ।

हर तरफ कोहरा छाया है यहाँ।।

ना बच्चे अटखेली करते हैं।

ना गाड़ियों के हार्न बजते हैं।।

सब तरफ है गहरी खामोशी छाई।

जाने क्या कहती है यह तन्हाई।।

मैं भी बैठी हूँ चुपचाप अकेली।

मेरी तन्हाई साथ है बनकर सहेली।।

डराता है यह सन्नाटा पसरा हुआ।

हर तरफ है बस धुआँ ही धुआँ।।

खाली सड़कों पर पशु-पक्षी घूमते हैं।

शायद रोटी की तलाश में भटकते हैं।।

कोई आएगा उनको इस सन्नाटे में रोटी खिलाने।

शायद वह भी उम्मीद का दामन थामे रखते हैं।।

सन्नाटे को चीरती रहती है इनकी आवाज।

दिलाती है किसी के साथ होने का एहसास।।

शायद किसी दिन किसी पल यह कोहरा छटेगा।

शायद कल एक नयी सुबह का आगाज होगा।।

इसी उधेड़-बुन में नींद के आगोश में समाती हूँ।

दूर कहीं सपनों की दुनिया में खोती जाती हूँ।।



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