हमारा किसान
हमारा किसान
कुछ कर रहे हैं, यहाँ बिना मेहनत के ही,
लाखों कमा रहे हैं महफ़िल जमा रहे हैं,
ज़िन्दगी का लुफ्त उठा रहे हैं।
लेकिन मिट्टी में सोना उगाने वाले,
अपने तन को धूप में झुलसाने वाले,
देश को रोटी खिलाने वाले,
इतनी मेहनत के बावजूद भी कर्जा चुका रहे हैं,
अपना ख़ून पसीना बहा रहे हैं।
मिल जाएगा उनका पसीना एक दिन मिट्टी में,
किंतु ख़ून उनका बाकी रहेगा,
उनके अंश के रूप में पलता रहेगा।
नहीं करेगा वह कभी हिम्मत फिर हल चलाने की,
काँप जाएगा उसका सीना उस हल को उठाने में।
नहीं भूलेगा वह दर्द जो कभी उसके पिता ने सहा था,
और वह पिता की बाँहों के बिना ही पला था।
देखकर ऐसा भविष्य कौन फिर हल उठाएगा,
कौन अपना पसीना यूँ ही बहायेगा।
धीरे-धीरे ये ही मौसम चल पड़ेगा,
किसान का बेटा फिर शहर की ओर निकल पड़ेगा।
ज़रा सोचो कल्पना करो अपने भविष्य की,
दो वक़्त की रोटी भी तब मुश्किल पड़ेगी,
जब ऐसी हवा चलेगी।
दे दो सारे हक़ उन्हें अधिकार उन्हें,
ताकि उनका ख़ून पसीना सिर्फ मिट्टी में ना मिले,
बल्कि हरियाली और खुशहाली बन के निकले।
तभी यह देश खुशहाल होगा,
जब हर किसान यहाँ बराबरी का हकदार होगा।