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निवेदन

निवेदन

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कभी कभी मेरे मन में ख्याल आता है,

आतंक फैलाकर दुनिया में कोई क्या पाता है ?

जो लोग बच्चे बूढों की हत्या निर्मम करते हैं,

पाता नहीं वो रातों को कैसे सोते हैं ?


उजाले सुहाग की लाली उन्हें नहीं जलाती ?

अधजली चिता मतवाली उन्हें नहीं सताती ?

क्या एक छण के लिए भी उन्हें नहीं होती अनुभूति ?

उनके कारण बुझ गयी है किसी एक घर की ज्योति।


गोधरा की गलियों से अक्षरधाम की शिलाओं तक,

कश्मीर की वादियों से मुंबई की गलियारों तक।

हर पल हर क्षण दहशत का काला साया है,

सोचो जरा जो गया क्या वो कभी वापस आया है ?


कब तक कश्मीर यूँ ही जलता रहेगा ?

कब तक देश की जनता दहशत में सोती रहेगी ?

रो-रो कर पूछती है भारत माँ-

यह आग कब बुझेगी, यह आग कब बुझेगी ?


मनुष्य जब छणिक दुःख पाता है,

रातों की नींद और चैन खो जाता है।

सोचो जरा गौर करो, अपनी अंतरात्मा टटोलो,

अपने दिल और दिमाग के बंद दरवाज़े खोलो I


क्या पाते हो तुम हत्या और जेहाद के नारों से ?

क्या पाते हो बमों और गोलियों की बौछारों से ?

मानव जीवन है अनमोल इसे व्यर्थ न गँवाओ,

है कोटि-कोटि निवेदन बेवजह रक्त न बहाओ।।


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