नींद
नींद


काश, ये नींद भी
बिकती किसी बाज़ार में,
या किसी अपनों से ही
मिल जाती थोड़ी उधार में !
आज फिर पूरी रात
सोया नहीं है मैंने,
ये आँखें खुली रहती है
न जाने किसके इंतेज़ार में !
पैसा, दौलत, शोहरत
और नाम भी बहुत है,
आराम और शौक का
सामान भी बहुत है !
जब नींद नहीं आती
तब सोचता हूँ मैं,
क्यु नींद बेच कर खरीदी
ये सोहरत बेकार में !
काश, ये नींद भी
बिकती किसी बाज़ार में,
या किसी अपनो से
मिल जाती थोड़ी उधार में !