आगोश (संयोग श्रृंगार रस)
आगोश (संयोग श्रृंगार रस)
तेरे आगोश में आकर।
मैं हर गम भूल जाती हूं।
तुझे देखे बिना न दिल को।
मेरे चैन आता है।
बिखर जाती हूं, तिनके सी।
जो तुझसे दूर जाती हूं।
तेरे आगोश में आकर।
मैं हर गम भूल जाती हूं।
कभी जब रात के आगोश में।
बैठे रहते थे, घंटो तक।
ठहर जाते हैं वो पल यूं।
मैं उन पलों में बीत जाती हूं।
तेरे आगोश में आकर।
मैं हर गम भूल जाती हूं।
कभी पंछी के जैसे उड़ रहा।
होता है मेरा मन।।
वो आगे दौड़ जाता है।
मैं पीछे छूट जाती हूं।
तेरे आगोश में आकर।
मैं हर गम भूल जाती हूं।
सूखे पत्तों की सरसराहट सा।
सूखा हुआ मेरा जीवन।
तेरे आगोश में गर हूं।
तो फिर से खिलखिलाती हूं।।
तेरे आगोश में आकर।
मैं हर गम भूल जाती हूं।
समंदर की गहराइयों से।
भी गहरा ये प्यार है तेरा।
अगर मैं पास आती हूं।
तो तुझ में डूब जाती हूं।।
तेरे आगोश में आकर।
मैं हर गम भूल जाती हूं।
वो पहली बार बारिश में।
जो तुमने दिल को चुराया था।
मैं उस बरसात के आगोश में।
आज भी भीग जाती हूं।।
तेरे आगोश में आकर।
मैं हर गम भूल जाती हूं।