दोराहा
दोराहा
आज फिर उलझनों ने रखा है घेर के
तेरे बारे ही सोच रहा हूँ सवेर से
खुश हूँ के तुम जिन्दगी में आये
मगर आये हो जरा देर से
तुम भी रिश्तों से बंधे हो
मैं भी रिश्तों से जुड़ा हूँ
आज जिन्दगी के उस दोराहे पर खड़ा हूँ
एक राह तुम तक जाती है
दूसरी और रिश्तों की दुनिया नजर आती है
ना रिश्तों की डोर तोड़ सकता हूँ
ना तुम्हें ही छोड़ सकता हूँ
इक ऐसी राह तलाशता हूँ
ताकि वो हर इंसान मेरे करीब रहे
जिसे मैं चाहता हूँ
मेरी उम्मीदें बरकरार है
क्या तुम चले आओगे
क्या मुझसे इतना प्यार है
याॅं फिर रिश्तों का प्यार
मेरे प्यार पर भारी पड़ जायेगा
ये दूरियाँ यूँ ही बनी रहेगी
और जीवन गुजर जायेगा
इस जन्म में अधूरी रह जायेगी तमन्ना
के तुम्हें है पाना
तेरे लिए दुनिया में हमें
फिर से पड़ेगा आना।

