एतबार
एतबार
यूँ धड़कता नहीं
दिल किसी का
बिन बताए...
पहले दिल-ए-नादान
निगाहों की बातें करता है...
फिर आखिर सारा आलम
दिवानगी में डूब जाता है !
वैसे तो हर कोई
इस दिल को भाता नहीं ;
मगर दबे पांव
रफ्ता-रफ्ता शायराना अंदाज़ में
चाहत अपनी रंग लाती है...
कैसे न करे कोई
किसी का इंतज़ार...
जब इस दुनिया में रब
हर किसी की जोड़ी
ऊपर से लिखकर भेजता है !

