ग़ज़ल - मेरी ख्वाहिश
ग़ज़ल - मेरी ख्वाहिश
कुछ और नहीं सोचा कुछ और नहीं माँगा।
हर वक्त तुझे चाहा कुछ और नहीं माँगा।
दौलत से क्या होगा यदि दिल ही रहे खाली।
बस साथ रहे तेरा कुछ और नहीं माँगा।
मिलता है बड़ी किस्मत से यार यहाँ सच्चा।
मिल जाये वही हीरा कुछ और नहीं माँगा।
दीदार खुदा का हो यदि पाक नज़र अपनी।
दिल साफ़ रहे अपना कुछ और नहीं माँगा।
सब लोग बराबर हैं ना कोई बड़ा छोटा।
ना भेद रहे थोड़ा कुछ और नहीं माँगा।
यूँ जंग नहीं होती जो प्यार यहाँ होता।
मक़सद हो अमन सबका कुछ और नहीं माँगा।
मैं तख़्त नहीं चाहूँ ना ताज मुझे भाता।
दे नूर मुझे 'अवि' का कुछ और नहीं माँगा।

