वो फ़ीके रंग की साड़ी
वो फ़ीके रंग की साड़ी
आज फिर वही साड़ी पहनी है मैंने
कितने बरसों के बाद
जो लाये थे तुम मेरे लिए
और बोले थे
इतने फ़ीके रंग क्यों पसंद हैं तुम्हें
बाजारों में मिलते ही नहीं
तुम्हारे ये फ़ीके रंग
चटक रंगों से खिली रहती हैं दुकानें
मैंने पूछा था तुमसे तब
फिर क्यों लाते हो फ़ीके रंग
मेरी पसंद के
तुमने कहा था तुम ऐसे ही पसंद आती हो मुझे
तुम्हारी पसंद के साथ
और अपने बटुए में से
एक बिंदी का पत्ता निकाल
कहा था तुमने
बस ये बड़ी सी लाल बिंदी
लगा सको तो लगा लेना
मेरी पसंद मानकर
अपने फ़ीके रंगों के साथ
पर लगा नहीं पाई मैं
उतनी बड़ी और चटक बिंदी
चाहकर भी
आज इतने बरसों बाद मैंने फिर पहनी है
वही फ़ीके रंग वाली साड़ी
और तुम्हारी याद खिल रही है
मेरे माथे पर
बड़ी और चटक लाल बिंदी के साथ