STORYMIRROR

Dr Manisha Sharma

Romance

4  

Dr Manisha Sharma

Romance

वो फ़ीके रंग की साड़ी

वो फ़ीके रंग की साड़ी

1 min
222

आज फिर वही साड़ी पहनी है मैंने

कितने बरसों के बाद

जो लाये थे तुम मेरे लिए

और बोले थे

इतने फ़ीके रंग क्यों पसंद हैं तुम्हें

बाजारों में मिलते ही नहीं

तुम्हारे ये फ़ीके रंग

चटक रंगों से खिली रहती हैं दुकानें

मैंने पूछा था तुमसे तब

फिर क्यों लाते हो फ़ीके रंग 

मेरी पसंद के 

तुमने कहा था तुम ऐसे ही पसंद आती हो मुझे

तुम्हारी पसंद के साथ

और अपने बटुए में से 

एक बिंदी का पत्ता निकाल 

कहा था तुमने

बस ये बड़ी सी लाल बिंदी 

लगा सको तो लगा लेना 

मेरी पसंद मानकर

अपने फ़ीके रंगों के साथ

पर लगा नहीं पाई मैं 

उतनी बड़ी और चटक बिंदी

चाहकर भी

आज इतने बरसों बाद मैंने फिर पहनी है

वही फ़ीके रंग वाली साड़ी

और तुम्हारी याद खिल रही है 

मेरे माथे पर 

बड़ी और चटक लाल बिंदी के साथ



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance