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Anjali Pundir

Romance

4.7  

Anjali Pundir

Romance

क्यों पराई हो गई

क्यों पराई हो गई

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जिंदगी झाड़ियों में अटके चाँद-सी खो गई

हँसते-हँसते, खेलते किस्मत ही जैसे सो गई


जितना जलाया आग से दामन जो तुमने साथिया

उतनी ही लपटों की तपिश में देह मेरी घिर गई


किसने कहा था गैर को क़ासिद बनाने के लिए ?

अपनी लुटी और गैर की किस्मत यहाँ संवर गई


दावा था उनका प्यार में वादेे निभाने के लिए 

हमसे जो खाई थी कसम सोचे जरा किधर गई ?


गुनगुनाई थी गजल जो प्यार की हमनेे कभी

गैर केे होठों पर सच कर क्यों पराई हो गई ?


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