तू इश्क़ कर, कुछ ज़्यादा कर
तू इश्क़ कर, कुछ ज़्यादा कर
नफ़रत कर खत्म अपनी,
या फिर उसको आधा कर
तू इश्क़ कर, कुछ ज़्यादा कर
मानती हूं मिला है हर बार
तुझे कोई ग़लत इंसान
पर हों सकता है न इस
बार ऐसा कुछ न हो मेरी जान
तू इस बार मुझे खुल कर जीने का वादा कर
तू इश्क़ कर, कुछ ज़्यादा कर
हो सकता है उसने बताया नही तुम्हें
पर तुमने पूछ कर देखा है क्या
धोखे मिलें तुम्हें जिनसे
वो भी उन सब के जैसा है क्या
तू बात कर और उसे समझ
अनजाने में खुद से कोई वादा ना कर
तू इश्क़ कर, कुछ ज़्यादा कर
गिले शिकवो को अपने दूर कर
यूं ना अपने भरोसे को चूर चूर कर
अपनी ग़लती की माफ़ी मांग
और उसकी ग़लती पर बेशक तू डांटा कर
पर इस सफर को ना आधा कर
तू इश्क़ कर, कुछ ज़्यादा कर।

