उसे देखना
उसे देखना
याद है तुझे देखने का वो पल
जिसमे क़रार गया था मेरा
सब भूल गया था इक़ पल को
इक़ झटके में निकल गया दिल मेरा
दिल ज़िगर गुर्दे सब हिल गये थे
हटाया था जब नक़ाब तूने
मैं भोला नादान परिंदा
उलझ गया ज़ुल्फो में तेरे
सुध बुध सब खोगई थीं
इतनी हिली थी रूह मेरी
हो गए थे सपने टुकड़े टुकड़े
जब तू बोली अम्मी हूँ इक़ लख्तेजिगर की
मैं भोला पंछी भूला न
पा रहता था उस लम्हें को
कसमकश में गुज़र रहे थेदिन रात मेरे
जुड़ तो गई तो रूह मेरी तेरी रूह से
इतनी हिली थी ज़मी मेरी
पीछा करने का मन
हर दम कर था मेरा
भोली अन्ज़ान चिडिया को
छेड़ने का दिल करता था मेरा
खुद की नही कोई पहचान थी
उस मासूम गुडिया में जान बहुत थी
समझ नही पा रही थी वो
क्या चल रहा था ज़ालिम के
मन मे
दुआ थी या बद्दुआ थी
पर जिंदगी मेरी बदल दी थी
पीछा मुझ से छुड़ाकर
आज़ाद खुद को समझ रही थी
मालूम नहीं था उस गुडिया को
दूर जाकर वो करीब आने वाला है
वो गुड्डा गुडिया को बहुत सताने वाला है
लूट कर दिल का क़रार चैन लेने वाला है
नफरत बहुत थी उसे इश्क़ से
नाम भी सुनना ग़वारा न था
ऐसी उलझी थी वो इश्क़ में
अब निकलना गवारा न था।