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Arif Asaas

Romance

4.5  

Arif Asaas

Romance

उसे देखना

उसे देखना

1 min
210


याद है तुझे देखने का वो पल

जिसमे क़रार गया था मेरा

सब भूल गया था इक़ पल को

इक़ झटके में निकल गया दिल मेरा


दिल ज़िगर गुर्दे सब हिल गये थे

हटाया था जब नक़ाब तूने

मैं भोला नादान परिंदा

उलझ गया ज़ुल्फो में तेरे


सुध बुध सब खोगई थीं 

इतनी हिली थी रूह मेरी

हो गए थे सपने टुकड़े टुकड़े

जब तू बोली अम्मी हूँ इक़ लख्तेजिगर की

मैं भोला पंछी भूला न

पा रहता था उस लम्हें को 


कसमकश में गुज़र रहे थेदिन रात मेरे

जुड़ तो गई तो रूह मेरी तेरी रूह से

इतनी हिली थी ज़मी मेरी


पीछा करने का मन 

हर दम कर था मेरा

भोली अन्ज़ान चिडिया को

छेड़ने का दिल करता था मेरा


खुद की नही कोई पहचान थी 

उस मासूम गुडिया में जान बहुत थी

समझ नही पा रही थी वो

क्या चल रहा था ज़ालिम के

 मन मे


दुआ थी या बद्दुआ थी

पर जिंदगी मेरी बदल दी थी

पीछा मुझ से छुड़ाकर 

आज़ाद खुद को समझ रही थी


मालूम नहीं था उस गुडिया को

दूर जाकर वो करीब आने वाला है

वो गुड्डा गुडिया को बहुत सताने वाला है

लूट कर दिल का क़रार चैन लेने वाला है


नफरत बहुत थी उसे इश्क़ से

नाम भी सुनना ग़वारा न था

ऐसी उलझी थी वो इश्क़ में

अब निकलना गवारा न था।


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