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Lakshman Jha

Romance

4  

Lakshman Jha

Romance

“ प्रिये की प्यास “

“ प्रिये की प्यास “

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मेरे सजन जरा देखो इधर ,मैं सज के सँवर के आयी हूँ !

तेरे बिन था सुना पहले ,अब बन -ठन के मैं आयी हूँ !!


सूना सूना सब लगता था ,जब तुम साथ नहीं रहते थे !

कामों में नहीं मन लगता था , यूँही अहर्निश खोए रहते थे !!


जबसे आप गए साजन जी ,मेरा जीवन तो बिरान बना !

रात विरह की कटती नहीं है , दिन मेरा मरुउद्यान बना !!


मृगतृष्णा की प्यासी हिरण ,इस घर से उस घर करती थी ! 

आपके आने की निश-दिन ,अपने आराध्य को जपती थी !!


मेरा सजना और मेरा सँवरना ,आपके रहते केवल निखरता है !

आप ही तो सब कुछ है साजन ,मेरा रूप आप से ही सजता है !!


यह रूप ,सौदर्य ,शृंगार सभी ,सब आपको अर्पित करती हूँ !

हमको अपने उर में रख लो ,यही प्रार्थना आपसे करती हूँ !! 


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