“ प्रिये की प्यास “
“ प्रिये की प्यास “
मेरे सजन जरा देखो इधर ,मैं सज के सँवर के आयी हूँ !
तेरे बिन था सुना पहले ,अब बन -ठन के मैं आयी हूँ !!
सूना सूना सब लगता था ,जब तुम साथ नहीं रहते थे !
कामों में नहीं मन लगता था , यूँही अहर्निश खोए रहते थे !!
जबसे आप गए साजन जी ,मेरा जीवन तो बिरान बना !
रात विरह की कटती नहीं है , दिन मेरा मरुउद्यान बना !!
मृगतृष्णा की प्यासी हिरण ,इस घर से उस घर करती थी !
आपके आने की निश-दिन ,अपने आराध्य को जपती थी !!
मेरा सजना और मेरा सँवरना ,आपके रहते केवल निखरता है !
आप ही तो सब कुछ है साजन ,मेरा रूप आप से ही सजता है !!
यह रूप ,सौदर्य ,शृंगार सभी ,सब आपको अर्पित करती हूँ !
हमको अपने उर में रख लो ,यही प्रार्थना आपसे करती हूँ !!