प्रेम में दुनियादारी
प्रेम में दुनियादारी
भरोसे में 'इतने उतने' की कहाँ गुंजाइश होती है?
भरोसा तो भरोसा होता है....
मुक्कमल भरोसा....
हाँ, तो बात हो रही थी भरोसे की...
प्रेम में भरोसे की.....
लड़की जब प्रेम में होती है तो उसे अपने प्रेम पर भरोसा होता है...
उस भरोसे के साथ वह अपने माँ बाप से लड़ लेती है...
पूरे ज़माने से लड़ जाती है...
कभी कभी घर परिवार तक को छोड़ देती है...
और प्रेमी महोदय !!
उनके लिए प्रेम बस प्रेम ही होता है...
उनके लिए प्रेम के अलावा दुनियादारी भी अहम होती है...
और दुनियादारी के दस्तूर को भी...
प्रेमी महोदय को इस सच्चाई का पता है कि प्रेम से रोटी नही खायी जाती...
प्रेम तो जिंदगी का एक पार्ट है बस..
और वह प्रेमिल लड़की?
वह एक पागल लड़की होती है....
प्रेम में पागल....
वह मन ही मन मानती है कि जिंदगी में सबकुछ प्रेम ही है....
और कुछ भी नही....