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Deepa Jha

Romance

4  

Deepa Jha

Romance

इंतज़ार में हैं दीवारें

इंतज़ार में हैं दीवारें

1 min
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रोम की पुरानी दीवारों में,

कभी वीरान सी पड़ी चर्च के सन्नाटों में 

लंदन में बहती थेम्स के किनारे 

और कभी क़ुतुब की शानदार नक्काशियों में 

सब हो कर भी कुछ अनमना सा था,

साथियों के कोलाहल में कुछ सूना सा था,

मिली न थी कभी तुमसे पर भी तुम्हारे होने का गुमान सा था 

कोई छवि भी तो मन पटल पर अंकित न थी,

फिर भी दिल हमेशा बेचैन सा था,

जो तुम मिल गए हो हमसे आज 

तो बरसों पुरानी वह पहाड़ी हवा सुहानी लगती है ,

मेरे कानों को अब उनकी कहानी कुछ जानी-पहचानी लगती है ,

वक़्त को वापस मोड़ कर ,

संसार के बेकार बंधन तोड़ कर,

लौट चलूंगी इस बार तुम्हारे साथ 

की रोम की प्राचीन दीवारें शायद अब भी करती हों 

हमारे तुम्हारे साथ आने का इंतज़ार। 



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