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Deepa Jha

Abstract Classics

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Deepa Jha

Abstract Classics

अज्ञान के दैत्य

अज्ञान के दैत्य

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भूमि पटी हुई है अज्ञान के दैत्यों से 

आओ, कहाँ छुपे हो हे राघव, केशव हे 

क्या आज नहीं कोई अधर्म मिटाना है 


क्या इस अधर्म के कुरुक्षेत्र से नहीं

अब अज्ञान का धूल हटाना है 

त्राहि त्राहि मनुज-पंछी, सरस सब हैं 

शब्दों-छंदों में क्या अब न पिरोयेगा कोई स्याही को 


क्या धरती पर स्याही की कालिख ही बस है

तारों को पढ़ गए जो, सागरों को तर गए जो 

विस्मय की चेतना, कौतुहल का बीज बो गए थे जो 


उन सहस्र मुनिजनों का क्या

ज्ञान सर्वथा नाश कर जाना है 

क्या आज नहीं कोई अधर्म मिटाना है 


अज्ञान के इस अँधेरे को क्या

इस कुरुक्षेत्र में विजय पाना है ?


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