एक टुकड़ा आसमान
एक टुकड़ा आसमान
वो जो खिड़की से मेरी नज़र आता है एक टुकड़ा आसमान
वो जो खिड़की से मेरी नज़र आता है एक टूटा सा चाँद
वो जो खिड़की पे मेरी झूल जाता है वो नन्हा सा जलद
लगता है मेरा अपना ही ,है हर एक की नज़र से अलग।
कभी तो उस टुकड़े में देख पाती हूँ तुम्हें हँसते हुए
और कभी एक खुशबू सी भर जाती है उस खिड़की से घर में ,
कभी जब उस मेरे टुकड़े में चमकते हैं तारे ,
लगता है जैसे कि देखा है तुमने मुझे स्नेह भरी नज़रों से ,
जब पा नहीं पाती लेकिन तुम्हें ,
तकिये के नीचे रख के सो जाती हूँ साँसों को तेरी महसूस करते हुए.