STORYMIRROR

Deepa Jha

Romance

4  

Deepa Jha

Romance

एक टुकड़ा आसमान

एक टुकड़ा आसमान

1 min
458


वो जो खिड़की से मेरी नज़र आता है एक टुकड़ा आसमान 

वो जो खिड़की से मेरी नज़र आता है एक टूटा सा चाँद

वो जो खिड़की पे मेरी झूल जाता है वो नन्हा सा जलद 

लगता है मेरा अपना ही ,है हर एक की नज़र से अलग।  

कभी तो उस टुकड़े में देख पाती हूँ तुम्हें हँसते हुए 

और कभी एक खुशबू सी भर जाती है उस खिड़की से घर में ,

कभी जब उस मेरे टुकड़े में चमकते हैं तारे , 

लगता है जैसे कि देखा है तुमने मुझे स्नेह भरी नज़रों से ,

जब पा नहीं पाती लेकिन तुम्हें ,

तकिये के नीचे रख के सो जाती हूँ साँसों को तेरी महसूस करते हुए.



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance