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Deepa Jha

Tragedy

3  

Deepa Jha

Tragedy

डूबता तारा

डूबता तारा

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बड़ी भारी सी रात रही आज,

हज़ारों टिमटिमाते तारे हो गए ओझल 

श्मशान की दहकती आग में आज,

वो दूर शहर की चका चौंध फिर भी चलती रही 

वो गलियों का शोर करता रहा हर चीखो-पुकार को बेआवाज,

ये रात गुज़र रही थी हर किस्से को निगलती 

झुकती उसके भार से कुछ और

सूरज के हवाले कर जाता हूँ अब 

यह शोर, ये श्मशान 

थके मन से अब लेता हूँ विदा मैं

की आज का डूबता तारा हूँ मैं। 



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