बेख़बर वो जवानी कोई
बेख़बर वो जवानी कोई
तैरती है आँखों में अक्सर
एक तस्वीर पुरानी कोई
धुंधला सा है चेहरा ,लेकिन
लगती है दीवानी कोई
करती है सवाल मुझसे
जिसका कोई जवाब नहीं
दिल के क़रीब तो है लेकिन
भूला हुआ सा ख़ाब कोई
जो मुक्कम्मल ना होगी शायद
आधी अधूरी कहानी कोई
तलाश बेचैन कर जाती है
जैसे लम्हों की मनमानी कोई
तैरती है आँखों में अक्सर
एक तस्वीर पुरानी कोई
जैसे लौट के आइ हो फिर से
बेख़बर वो जवानी कोई ।