ऐ ज़िंदगी ज़रा सब्र कर
ऐ ज़िंदगी ज़रा सब्र कर
ऐ ज़िंदगी ज़रा सब्र कर
बेबसी का जो है सफ़र
मंज़िलों से मिल जाएगी
आफ़ताब बन, खिल जाएगी
यूँ फिर ना तू दर बदर
ऐ ज़िंदगी …. ज़रा सब्र कर
खोया है क्या अब तक तूने
जितने भी है फलक,ख़्वाब बुने
है आइना, टूट जाएगी
तेरी हर तलब छूट जाएगी
ग़मों की जो है, ये लहर
ऐ ज़िंदगी …ज़रा सब्र कर
दो चार कदम तू चल ज़रा
है वक्त का जो, ये फ़ैसला
वक्त रहते ही सिमट जाएगी
दूरियाँ, दर्मयां न आएगी
है सोच कैसा, क्या है फ़िकर
ऐ ज़िंदगी …..ज़रा सब्र कर
इस राह पे है,सब चले
कुछ सिरफिरे, कुछ मनचले
है रीत ये के, चलना है
हर किसी को यहाँ, जलना है
होता ना राख फिर भी बशर
ऐ ज़िंदगी …..ज़रा सब्र कर।