महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा
महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा
राणा की क्या बात करे वो स्वाभिमान की गाथा है
कटकर भी न झुकने वाला, वो राजपुताना माथा है।
दिया जनम जिसने, वो मेवाड़ की माटी थी
चलता था जब वो, तो अरावली थर्राती थी
जिसके आने से पहले, हवाएं भी गुर्राती थी
नदियां राणा के पहले उसका संदेशा पहुँचाती थी
मेवाड़ दिए की वह जलती, इकलौती बाती थी
सही मायने में वह 56 इंच की छाती थी
अद्भुत व्यक्तिव वह निखरा था,
नही क्षणिक वह बिखरा था
कठोर राणा, के कड़े उसूल
जंगल में खाकर कंद मूल
अकबर को ललकारा था।
जब लड़
ते थे राणा, तो शोर हवाएं थम जाती थी
कल कल करती नदियां, मानो जम जाती थी।
लड़ते राणा को प्रकृति एकटक घूर निहारे
थम जाते थे पशु पक्षी और फूलों के आवारे।
हंसो का जोड़ा भी , छोड़ प्रेम, रण देखा था
जब राणा ने बेख़ौफ़, वो भारी भाला मानसिंह पर फेंका था।
रिपु संघारक राणा ने, रणभूमि को मृत मुग़लो से पाटा था
राणा का ये साहस, उन राजवंशो को चाँटा था
जिसने मुग़लो से डर कर, मातृभूमि को खैरातों में बांटा था
मरते दम तक, बच्चों को यह इतिहास बताया जाएगा
उस कांतिमान सूरज को, कुछ और उगाया जाएगा।