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Sachhidanand Maurya

Drama

4  

Sachhidanand Maurya

Drama

प्रकृति तुम्हारी शरण मे रहूँ

प्रकृति तुम्हारी शरण मे रहूँ

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तू जानती अपने बच्चों का ख्याल रखना,

इस विपदा में हम सबको सम्भाल रखना,

इंसा भागेगा मगर तू तो वही चाल रखना,

संकट में मानव, तू अपनी नजर काल रखना,

जी चाहता संग में तुम्हारे विचरण मैं करूं,

तुम्हारी तरह बनूँ प्रकृति तुम्हारी शरण मे रहूँ।


कर्मो का हमको हमारे सिला जो दिया है,

पाया वही जो साथ तुम्हारे हमने किया है,

ये घड़ी हमे कुछ सीखने का जलता दिया है,

दिया कहाँ तुमको जो हमने तुमसे लिया है,

चाहे जी तुमपे तन मन धन सब अर्पण मैं करूं,

तुम्हारी तरह बनूँ प्रकृति तुम्हारी शरण मे रहूँ।


पास उनको बुलाया जो दूर हो गए थे ज्यादा,

चूर किया उनको मद में जो चूर हो गए थे ज्यादा,

सिखलाया प्रेम उनको जो क्रूर हो गए थे ज्यादा,

मिटाया शोहरत उनकी जो मशहूर हो गए थे ज्यादा,

चाहे जी कि मन मे सन्देश सारे तुम्हारे भरण मैं करूं,

तुम्हारी तरह बनूँ प्रकृति तुम्हारी शरण मे रहूँ।


अपने बुरे कर्म मिटायेंगे सारे ही माँ,

वादे तुमसे है निभाएंगे सारे ही माँ,

दीप सदगुणों के जलाएंगे सारे ही माँ,

तम जहाँ से भगाएंगे सारे ही माँ

काल कोरोना का अब मरण मैं करूं,

तुम्हारी तरह बनूँ प्रकृति तुम्हारी शरण मे रहूँ।


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