समर्पण।
समर्पण।
तम के सागर ने जब घेरा हो, विष का गागर जब पीना हो
अंधकार सब मिट जाएगा, जब प्रभु चरणों में जाना हो
जब कहर दर्द का टूटा हो, दुख बिजली बन टूटी हो
जीवन के दुख दर्द सब मिट जाएंगे, जब प्रभु चरणों में जाना हो
जब जीवन की सांसे अंतिम हो, आशाएं भी जब धूमिल हों
नव- आशाओं की कलियां खिलेंगीं, जब प्रभु चरणों में जाना हो
अपनों ने जब छोड़ा हो, बनते सपने भी टूटे हों
पराए भी अपने बन जाएंगे, जब प्रभु चरणों में जाना हो
जब वाणी ने साथ छोड़ा हो, अंतर्मन भी व्याकुल हो
तपन हृदय की मिट जाएगी, जब प्रभु चरणों में जाना हो।