दिल के क़रीब
दिल के क़रीब
इश्क़ मुक्कम्मल हो ये ज़रूरी तो नहीं
आधे अधूरे इश्क़ की कहानी भी खूबसूरत होती है
ये बात और है के सफ़र में, दर्द पालने पड़ते है
ज़िंदगी है साहेब, इन्हें कुछ ज़ख्मों की भी ज़रूरत होती है
रूह किसे दिखती है ,हुस्न और दौलत के आगे
ये दुनिया जो है, सिर्फ़ मतलब के पीछे भागे
सच्चे दिल को यहाँ , ठोकर ही नसीब होती है
वोहि दर्द दे जाती है ज़्यादा जो दिल के क़रीब होती है