अश्क़
अश्क़
दर्द की ज़ुबान है अश्क़
कहती बेपनाह है अश्क़
हर मर्ज़ की दवा यही
गुनाह यही, सजा यही
तनहाइयों की गवाह है अश्क़
दुआ है अश्क़ , है ख़ुदा भी अश्क़
है आसमान खिला खिला
ज़मीन पे भी है क़ाफ़िला
है कारवाँ इतरा रही
जो दर्द अश्क़ बहा दिया
खुद से ही ख़फ़ा ख़फ़ा है अश्क़
वजह है अश्क़ तो है वफ़ा भी अश्क़
मिले थे जो हम पहली दफ़ा
ख़ुशी में अश्क़ था रो दिया
अब जो बिछड़न कि है दूरियाँ
दर्मयां दर्द का हो दिया
सफ़र है अश्क़, है हमसफ़र भी अश्क़
असर है अश्क़, हर नज़र है अश्क़
अश्क़ से शुरु हर आह
और ख़त्म वही हुआ है।