मजदूर
मजदूर
देखो..... !
मैं एक मजदूर हूँ।
कितना मजबूर हूँ।
बनाता लोगो के घर हूँ।
पर अपने घर से दूर हूँ।
देखो.......!
न जाने कितनी बार
मैं धरा पर सोया हूँ,
इन अमीरों के हाथों,
अपना सम्मान खोया हूँ।।
अपनी ही मुसीबतों से चूर हूँ।
देखो.......!
मैंने न जाने कितनी बार
देवालय भी बनाये है।
अमीरों ने देखा न देवों ने देखा
कि मैं खुले आसमां के नीचे
क्यों सोने को मजबूर हूँ।
देखो...!
मैं एक मजदूर हूँ..।