क्यों सोने को मजबूर हूँ। देखो...! मैं एक मजदूर हूँ..। क्यों सोने को मजबूर हूँ। देखो...! मैं एक मजदूर हूँ..।
प्राणों में प्रतीक्षातुर प्रीत लिए दिन फिर रात में खो जाता है ! प्राणों में प्रतीक्षातुर प्रीत लिए दिन फिर रात में खो जाता है !
जहाँ हम मिलते थे अक्सर इतना तो तुम्हें याद होगा न। जहाँ हम मिलते थे अक्सर इतना तो तुम्हें याद होगा न।
अश्रु की धारा को क्या शस्त्र की धार रोक लेगा, पीड़ा जब मन में हो पैसा कैसे भर पाएगा ।। अश्रु की धारा को क्या शस्त्र की धार रोक लेगा, पीड़ा जब मन में हो पैसा कैसे भर...
संस्कृति से पहचान कराती। जगत की तीर्थ यात्रा हमारी। संस्कृति से पहचान कराती। जगत की तीर्थ यात्रा हमारी।
मैं देवालय की देहरी का दीपक , तुम मन्दिर की देवी के सम हो। मैं देवालय की देहरी का दीपक , तुम मन्दिर की देवी के सम हो।