दिल ढूंढ़ता है मानसी हर पल
दिल ढूंढ़ता है मानसी हर पल
दिल ढूंढता है तुम्हें हर पल
तुम को अग़र मिल जाये,
मेरी पाती
तो अपने हाथ से छू लेना
उन अक्षरों को
उन शब्दों को
उन वाक्यों को
जिन पर उकेरे है
मैंने नाम तुम्हारे
ऐसा नहीं है कि सिर्फ़
नाम ही लिखा है मैंने।
मैंने लिख दिया है वो सब कुछ
जो मैं अक्सर कहा करता था
तुम्हारा हाथ थामकर
स्कूल के दिनों में
तुम जो मुझे दे देती थी
अपनी किताब कि उस
पर लिखूँ मैं तुम्हारा नाम
तुम कहती थी,
तुम इतने अच्छे हो
इतना अच्छा लिखते हो
बड़े लेखक बन गए तो
कहीं भूल तो नहीं जाओगे न हमें।
तो सुनो मानसी,
मैं बड़ा बना हूँ या नहीं
पर ये जरूर है कि
जो लिखा हूँ तुम्हें
ये मेरे मन के शब्द हैं
मन की प्रार्थना है
जो सहेज कर रखता हूँ
अर्पित कर देता हूँ देवालय में
आज पुनरावृत्ति कर रहा हूँ
कहना सिर्फ ये है कि तुम
पाती को रखना सहेज कर
ये दिल ढूंढता है तुम्हें हर पल।
ख़्याल आये मेरा पाती पढ़ने पर
तो आना वही मिलूँगा,
जहाँ हम मिलते थे अक्सर
इतना तो तुम्हें याद होगा न।

