मिट्टी
मिट्टी
मिट्टी के घर
होते हैं कमज़ोर
पर होते हैं शालीन
शायद नहीं रखते ये स्वयं में
सख़्त रवैया
नहीं रखते अहंकार
नहीं रखते ये क्रोध।
टूट जाते हैं ,इस कारण
कभी कड़वी बातों से
कभी थोड़ा बल लगाने पर
ये स्नेह समझते हैं
क्रोध नहीं समझ पाते
छल कपट नहीं समझ पाते।
इनके मन की तितली
सच्चाई का ऊँचा
आकाश तय करती है।
सख़्त होने पर तो
इमारतें बनती हैं।
लंबी बहुत बड़ी
ये नहीं घबराती
थोड़े से बल से।
ये इमारतें सीख लेती हैं
नए चाल चलन
इन्हें नहीं होता अफ़सोस
आख़िर ये अपनी उद्गम
मिट्टी को भी भूल चुकी है।
मुश्किल है मिट्टी बनकर रहना
मुश्किल है हर हालात समझना
पर इमारतें कहाँ समझती हैं ?
इमारतों में मिट्टी की तासीर होती है
पर अक़्सर भूल जाती हैं इमारतें।