मन_मानसी_वसंत
मन_मानसी_वसंत
प्रेम के एक ख़त को
कितनी बार पढ़ा जा सकता है
मुझे ये नहीं पता...
प्रेम के द्वारा दी हुई चीज को
कितनी बार निहारा जा सकता है
मुझे नहीं पता....
शाम होते नभ पर चाँद बन कर आना
अँधेरे को मिटाना
कोई पुराने गाने को गाकर
हमेशा तुमको याद करना
ये भी उसी तरह है जैसे
कोई किताब पूरी पढ़ने के बावजूद
आधे अधूरे में छोड़ कर रख दी गयी हो मेज पर...
मुझे ये नहीं पता
पुनरावृत्ति किस चीज की जाए
किस चीज की नहीं
पर एक बात जो हर शाम और सुबह की तरह है ,वो है
प्रेम में ,प्रेम के लिए और प्रेम से प्रेम को पाया जा सकता है,
जहाँ संख्या का मान नहीं होता
सिर्फ भाव का मान होता है।
