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Dr. Anu Somayajula

Drama

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Dr. Anu Somayajula

Drama

कोविध मारें कोविद को

कोविध मारें कोविद को

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सोच रहा है जग सारा, कोविध मारें कोविद को।


बड़ा निपुण शिकारी है ये,

बिन तलवार दुधारी के ये,

चुन- चुन कर वार करे है ये,

सोच रहा है जग सारा, कोविध रोकें कोविद को,

सोच रहा है जग सारा, कोविध मारें कोविद को।


सांसों में घुल जाता ये,

प्राणों में बस, पलता ये,

मन ही मन खुश होता ये,

पूछ रहा है जग सारा, कोविध पावें कोविद को,

सोच रहा है जग सारा, कोविध मारें कोविद को।


स्नेह भुलाता मानव का,

धैर्य चुकाता मानव का,

बैर बढ़ाता जन मन का,

टूट रहा है जग सारा, कोविध तोड़ें कोविद को,

सोच रहा है जग सारा, कोविध मारें कोविद को।


दीखे तब ही वार करें,

सूझे तो फ़िर वार करें,

समझ पड़े सौ बार करें,

जूझ रहा है जग सारा, कोविध जानें कोविद को,

सोच रहा है जग सारा, कोविध मारें कोविद को।


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