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ए मेरी ज़िन्दगी

ए मेरी ज़िन्दगी

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पीछवाड़े के नीम की झुकी टहनियों-सी

कच्चें घरों की सुनी पड़ी देहलियों-सी

सिसकती रातों में हिचकियों-सी

ऐ ज़िन्दगी मेरी, तुम कैसी हो री?

तुम हो ख्वाबों में नींद प्रियसी जैसी

तुम हो रातों में गहरी चाँदनी जैसी

तुम दर्द के सीने की गर्म साँस-सी हो

तुम सदियों से दबे गहरे राज़-सी हो

तुम हो मौत के माथे पर ज़ुल्फ़ जैसी

तुम हो बँटे हुए, मेरे मुल्क जैसी

ऐ ज़िन्दगी मेरी तुम कैसी हो री?


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