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Ishwar Gurjar

Others

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Ishwar Gurjar

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स्कूली बच्चे...!

स्कूली बच्चे...!

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यह बच्चे जिनके बस्तों से शुरू होती है ; नई ख़्वाबगाहों की पगडंडियां .....!

जिनकी नोटबुक और स्लेटों में बने होते है बीते दिनों की दुनियाओं के नक़्शे ...!


जिंदगी जहां से होती है शुरू ; वहीं मिलती है देवदार के दरख्तों से भी ज्यादा सघन ,

ज्यादा हरी फानूस की तरह....!


बेतरतीब से बिखरी होती है इन दिनों की लाइफ..!

कितने मुलायम होते है समझ के लफ़्ज ..?

कितनी कोमल और मासूम होती है सोच की जड़ें...? 


वक्त जिनकी मुट्ठियों में होता है बेअसर

जिनके पैरों में धूल होती है सदियों की,


वो बेफिक्र खेल लेते वहाँ भी ;

की जहाँ सल्तनतें लगी दांव पर हों,

कि लुट चुकी सदियों के असबाब हो ,

या की दुनिया मिटने पर आमाद हो।


मैं इन्हें बताऊ कि तुमने ही नहीं जाना मुझसे

की बारिशें कैसे होती है..?

या कैसा होता है पेड़ो का दर्द..?

क्यों लोट आते है परिंदे आसमानों से ..?

रातों में ही क्यों चमक उठते है तारे..?


मैंने भी बहुत कुछ जाना तुम सबसे

कि कैसे भूला जाता है जीवन के संताप को...?

कैसे हंसी जाती है एक निश्छल हँसी...?

कब और कैसे किया जाता है ताज्जुब ..?

जानने की क्या होती है खुशी..?


तुम्हारे गैर जरूरी सवालों से लदी दोपहरें जब थककर लौट जाती हैं ....!

या जब-जब मिलता हूँ तुम सब से अलग-अलग जगहों पर तो तुम्हारे साथ जीता हूँ मैं भी अपने बचपन को, संजीव करता हूं अपनी यादों को..!

कि काश! ऐसे ही स्कूली बच्चा बना रहता जिंदगी भर,  तुम्हारे साथ बैठता पेड़ो वाली कक्षाओं में ; करते चिड़ियाओं और उनके घोंसलों की बातें

कभी न थकते पैर हजार खेल खेलने के बाद भी...!


लेकिन ऐसा हो न सका....!



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