सोचा तो यह भी था कि!
सोचा तो यह भी था कि!
सोचा तो यह भी था कि
तिनके बटोरने की जुगत में
जिंदगी जाया न करेंगे
भूल जाएंगे उन खताओं को
जो कभी की ही नहीं थी उन्होंने
माफ करेंगे उनको भी
जिनके जुर्म न थे कुछ
दो बातों का गम वहाँ भी रखेंगे
लोग जहां सब्र के बांध तोड़ देते है
सोचा तो यह भी था कि
पचायेंगे दूसरों की सफलताओं को
सहन करना सीखेंगे खुद को
थप थकाएंगे किसी कि पीठ
मायूसी में कंधे लेकर हाजिर होंगे अपने
विफलता पे हंसने से रोकेंगे खुद को
उठने को थामेंगे, बढ़ाएंगे हाथ
सोचा तो यह भी था कि
जारी रखेंगे अपनी सहज हँसी को
कुटिल मुस्कुराहटों से करेंगे परहेज
कुचलने से रोकेंगे खुद को,
औरों का स्वाभिमान
पता तो यह भी था कि इतना आसान न होगा
यह सब...............!
