थोड़ी सी दिल्लगी
थोड़ी सी दिल्लगी
कि चलो तुमसे थोड़ी सी
दिल्लगी की जाए ,
कर के दोस्ती
फिर तोड़ दी जाए ।
हाँ शायद दर्द न हो उस पल को तुम्हें
तो चलो, उसमे थोड़ी मोहब्बत की भी
मिलावट कर दी जाए।
साँसों में अब उसे महसूस करो
जिसके न होने से तेरी तड़प बढ़ती जाए।
कि चलो तुमसे थोड़ी सी
दिल्लगी की जाए।
बेवफ़ाई के पश्मीने में लपेट तुझ को
फिर से ये, मोहब्बत दी जाए।
अश्क़ों की नुमाइश का तुझे, कोई शौक नहीं
चल तेरे अश्कों की भी, आज़माइश की जाए।
रिसते घावों पर मरहम लगाने के लिए
कुछ तो, दिल के क़रीब चोट दी जाए।
कि चलो, तुमसे फिर से
थोड़ी सी मोहब्बत की जाए
तेरे हर ज़ख्म पर महफ़िल में
अब हम भी, तेरी तरह वाह-वाह पाए।
बहुत गुमाँ था तुझे आईने में छुपे शख्स पर
कि चल उसके वजूद को भी,
मिल कर हम, झुठला आए ।
कि चलो तुमसे वही
दिल्लगी की जाए,
जिसमें रूह ये मेरी
कब से जलती जाए।
तुझे तेरी ही मोहब्बत का
सिला देते जाए,
कि चल तुझसे तेरा कुछ
अज़ीज़ अब लेते जाए ।।
कि चले जाओ अब, निगाहों से दूर तुम मेरी
बहुत कर ली दिल्लगी ,एक संगदिल से हमने।
सुनो वो कोने में कुछ बेज़ान एहसास
पड़े है मेरे, हो सके तो जाते-जाते
उन्हें भी अब कही, दफ़नाते जाए ।