छः मुक्तक :- इबादत की मूरत
छः मुक्तक :- इबादत की मूरत
इश्क़ की तपन में पड़ गए उन हाथों का क्या कहना,
लौ पकड़ने को जो बढ़ गए उन हाथों का क्या कहना,
किसी ने सहारा दे दिया किसी ने सहारा ले लिया मगर
जो अपने आप से लड़ गए उन हाथों का क्या कहना।।1।।
तुम्हारी हर ख्वाहिशों का इस्तकबाल करते हैं,
दुआओं में ख़ुदा से जिक्र तुम्हारा हाल करते है,
आँखों के दरिया में पानी बनकर रहते हो तुम,
मगर खुदगर्ज इतने है न कोई सवाल करते है।।2||
इबादत की मूरत दिल में उतर आई,
मुहब्बत हमारी आँखों में नजर आई,
छाई कितनी बेताबी पाने की जमाने में,
चांदनी चाँद से मिलने रात बनकर आई।।3||
लेकर आया हूँ पैगाम मैं आप सभी को सुनाने के लिए,
मानसिक स्वास्थ्य है कितना जरूरी ये बताने के लिए,
बढ़ता है अवसाद तनाव से, नकारात्मकता की आग से,
पल पल उठता है मन जीवन-दीप को बुझाने के लिए।।4||
जान है तो जहान है का मतलब ये समझाने के लिए
सामाजिक स्वास्थ्य है कितना जरूरी जगाने के लिए,
फैलता है कोरोना हाथ मिलाने से, दूरी न बनाने से,
करता हूँ निवेदन में आपसे मास्क लगाने के लिए।।5||
न फैलाओ भ्रम तुम झूठ को सच्चाई बनाने के लिए,
आपसी समरसता में तनाव की आग लगाने के लिए,
होती है कमजोर बार बार रिश्तों की ये सच्ची डोर,
करो बौद्धिकता से प्रयास भेदभाव मिटाने के लिए।।6||

