कभी भूल न पाऊंगा
कभी भूल न पाऊंगा
तुम कहती हो जीवन मे
इक दूजे को समझना सीखों
बातों बातों में इस दिल की
उलझन को मिटाना सीखो,
कब तक तुम ऐसे रूठोंगी ?
हर बार तुम्हें मनाऊंगा,
आँचल में रखकर सिर को
अपने मैं वही सो जाऊंगा,
दरिया बनकर भटका हूँ,
दर दर के पहुंन, हर घाटों पर,
मन के तीर्थ बैठे है
बन मंत्रों से विलाप अधरों पर,
मैं हर बार तुम्हारी आहटों
से प्रणय गीत बनाऊंगा,
हे प्रिये ! चाहकर भी मैं तुम्हें
कभी भूल न पाऊंगा।

