STORYMIRROR

shivendra 'आकाश'

Romance

4  

shivendra 'आकाश'

Romance

कभी भूल न पाऊंगा

कभी भूल न पाऊंगा

1 min
309

तुम कहती हो जीवन मे

इक दूजे को समझना सीखों

बातों बातों में इस दिल की 

उलझन को मिटाना सीखो,

कब तक तुम ऐसे रूठोंगी ?


हर बार तुम्हें मनाऊंगा,

आँचल में रखकर सिर को

अपने मैं वही सो जाऊंगा,

दरिया बनकर भटका हूँ, 

दर दर के पहुंन, हर घाटों पर,

मन के तीर्थ बैठे है


बन मंत्रों से विलाप अधरों पर,

मैं हर बार तुम्हारी आहटों

से प्रणय गीत बनाऊंगा,

हे प्रिये ! चाहकर भी मैं तुम्हें

कभी भूल न पाऊंगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance