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shivendra 'आकाश'

Tragedy Inspirational

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shivendra 'आकाश'

Tragedy Inspirational

"फिर नया दीपक जलाओ"

"फिर नया दीपक जलाओ"

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चारो ओर उदास चहरे है,

अंधकारों के क्यों पहरे है?

निराशाओं ने क्यो घेरा है,

यहाँ क्यो नही सबेरा है?

थोड़ी व्यथा को तो गाओ,

फिर नया दीपक जलाओ।।


जग में आईं कोई नई बीमारी,

कहते हैं सब उसको महामारी,

रखी रह गई सब दुनियादारी,

मानव मुख पर छाई लाचारी,

कोई बुझते दीप तो बचाओ,

फिर नया दीपक जलाओ।।


खोजते है अपने अपनो को,

ढूढ़ते है अपने सपनों को,

कोई- कब- कैसे खो गया?

नींद नींद में क्यों सो गया?

प्रश्नों के उत्तर तो बताओ?

फिर नया दीपक जलाओ।।


यहाँ वहाँ जहां नजरें जाती,

सब सूनी सड़के नजर आती,

जिंदगी खिलखिलाती थी जहाँ,

मायूसी ही नजर आती है वहाँ,

कोई प्राणों के प्राण तो बचाओ,

फिर नया दीपक जलाओ।।


हे कल्पने! वो दृश्य भी न बना,

जहाँ छूटते है प्राण वो न सुना,

कितने अपनों ने अपने खोय!

सुनकर श्मशान भी बहुत रोय!

कोई इन चिताओं को बुझाओ,

फिर नया दीपक जलाओ।।


अगणित आकाश के तारे टूटे,

सभी अपनो के ही प्यारे छूटे,

देखकर ये मन कांप जाता है,

कहीं कोई रास्ता न दीखता है,

कोई नई आशा तो दिलाओ,

फिर नया दीपक जलाओ।।


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