shivendra mishra 'आकाश'
Tragedy Inspirational
फिर का मतलब फिर
फिर का मतलब क्या
क्या का मतलब फिर
empty
tltle
"दिल "
छः
"फिर
"साथी
माफ़ी
दूसरी कमला देवी "बेलदारी" करती है उसका पति भी वहीं "चिनाई" करता है। दूसरी कमला देवी "बेलदारी" करती है उसका पति भी वहीं "चिनाई" करता है।
नफरत करती हूँ मैं गर पूछो तो , इन दोगले लोगों से बहुत। नफरत करती हूँ मैं गर पूछो तो , इन दोगले लोगों से बहुत।
लाड प्यार से पाला उसे, वो भारत माँ की आन पर मर मिटा बहादुर, सारे परिंदे अपने घर को लौट आए पर वो कभी ... लाड प्यार से पाला उसे, वो भारत माँ की आन पर मर मिटा बहादुर, सारे परिंदे अपने घर ...
उसकी देह पर दो फटे पुराने कपड़े थे हाथ में एक रोटी का टुकड़ा..। उसकी देह पर दो फटे पुराने कपड़े थे हाथ में एक रोटी का टुकड़ा..।
हर लम्हा एक खूबसूरत एहसास होता था, ऐसा तब होता था जब माँ के पास होता था, पर कुछ बनने की खोज मे... हर लम्हा एक खूबसूरत एहसास होता था, ऐसा तब होता था जब माँ के पास होता था, प...
हां दर्द दिल में उठता है..कैसे कह देते हो तुम फिर भी मैं पराई हूं। हां दर्द दिल में उठता है..कैसे कह देते हो तुम फिर भी मैं पराई हूं।
दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर। दूर कहीं दिख रहा था एक अस्थि पिंजर, जिस पर रह गया था बस मॉंस चिपक कर।
बाहर बादल जोरों पर बरस रहे हैं शायद सुबह की धूप के साथ मन से यादों के बादल भी छंट जाएंगे और उमड़ेंगे ... बाहर बादल जोरों पर बरस रहे हैं शायद सुबह की धूप के साथ मन से यादों के बादल भी छं...
संभाले रखा था दिल को दर्द का प्याला भी पिया संभाले रखा था दिल को दर्द का प्याला भी पिया
सनम ले गई हैं जिगर धीरे धीरे कयामत कयामत हुई हैं जहाॅं में सनम ले गई हैं जिगर धीरे धीरे कयामत कयामत हुई हैं जहाॅं में
सखी कैसे तुमको बतलाउ, बंदी जीवन का डाह समझाऊँ। सखी कैसे तुमको बतलाउ, बंदी जीवन का डाह समझाऊँ।
बदल गए हैं सारे दिल से जुड़े कई रिश्ते-नाते, इस समय के पीछे बिखर गया बड़ा घराना है ! बदल गए हैं सारे दिल से जुड़े कई रिश्ते-नाते, इस समय के पीछे बिखर गया बड़ा घराना...
यह वृद्धाश्रम की माँ का इंतजार है.... यह वृद्धाश्रम की माँ का इंतजार है....
अब बस यादों के हवाले हम कितने समृद्ध थे, अब बस यादों के हवाले हम कितने समृद्ध थे,
कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था। कुछ टूट रहा था, कुछ छूट रहा था, लेखन से नाता टूट रहा था।
अब शायद दुनिया बुद्धिमान हो गयी है , थोड़ी लालची और थोड़ी बेईमान हो गई है। अब शायद दुनिया बुद्धिमान हो गयी है , थोड़ी लालची और थोड़ी बेईमान हो गई है।
दीपोत्सव बीत गया शरद ऋतु ने ली अंगड़ाई। दीपोत्सव बीत गया शरद ऋतु ने ली अंगड़ाई।
क्यों कहें निज हस्त खुद को, मौत मुंह में टाँगते हैं ? क्यों कहें निज हस्त खुद को, मौत मुंह में टाँगते हैं ?
किस पर अब वो यकीं करे सबने फायदे ओर मुंह फेरे किस पर अब वो यकीं करे सबने फायदे ओर मुंह फेरे
चीख उठी है स्वयं वेदना, देख क्रूरता के मंजर । चीख उठी है स्वयं वेदना, देख क्रूरता के मंजर ।