जिंदगी
जिंदगी


हर रोज़ मेरी जिंदगी जाम हो जाती है
जब हर दिन शाम हो जाती है
ऐसा ही क्या हैं इन पैसों में
मेरी जिंदगी इसकी गुलाम हो जाती है।
हर रोज सोचता हूँ, आज जल्दी लौटूँगा
पर हर बार कोशिश नाकाम हो जाती है
जब कमाने निकलता हूँ मैं घर से
घर वापसी भी गुमनाम हो जाती है।
मेरे मासूम बच्चे राह देखते रहते हैं
पर मिलने की ख्वाहिश नीलाम हो जाती है
न जाने का पता न आने का पता
यूँ ही मेरी गृहस्थी बदनाम हो जाती है।
जब घरबार छोड़कर वक्त कटता है
तब जिंदगी बस आसुओं के नाम हो जाती हैं
जिसके लिए कमाते हैं, वहीं मजाक बनाते हैं
तो सोचो यह जिंदगी आसुओं के ही नाम हो जाती है।