STORYMIRROR

Amol Nanekar

Tragedy

5.0  

Amol Nanekar

Tragedy

जिंदगी

जिंदगी

1 min
306


हर रोज़ मेरी जिंदगी जाम हो जाती है

जब हर दिन शाम हो जाती है

ऐसा ही क्या हैं इन पैसों में

मेरी जिंदगी इसकी गुलाम हो जाती है।


हर रोज सोचता हूँ, आज जल्दी लौटूँगा

पर हर बार कोशिश नाकाम हो जाती है

जब कमाने निकलता हूँ मैं घर से

घर वापसी भी गुमनाम हो जाती है।


मेरे मासूम बच्चे राह देखते रहते हैं

पर मिलने की ख्वाहिश नीलाम हो जाती है

न जाने का पता न आने का पता

यूँ ही मेरी गृहस्थी बदनाम हो जाती है।


जब घरबार छोड़कर वक्त कटता है

तब जिंदगी बस आसुओं के नाम हो जाती हैं

जिसके लिए कमाते हैं, वहीं मजाक बनाते हैं

तो सोचो यह जिंदगी आसुओं के ही नाम हो जाती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy