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Ranjeet Singh

Tragedy

5.0  

Ranjeet Singh

Tragedy

बालश्रम

बालश्रम

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जब छोड़े सूरज अपना बिस्तर

पर अब भी है कोहरा सड़कों पे

जा रहे हैं वो नन्हे नन्हे

सोचू कैसा बोझ है इनपे।


नजर आते हैं हमउम्र उनके

पढ़ने को जाते हुए

पर वो जा रहे हैं बोझा ढोने

टोलियां बनाते हुए।


झूलना था झूले पे

उन नादानों को इस तरह

खेलते हैं अनोखे खेल 

हमउम्र उनके जिस तरह।


दूरियां जो बन गयी हैं

पुस्तकों से हाथों की

सोचता हूँ तो उड़ जाती है

नींद मेरी रातों की।


क्या अप्पूघर भी बंद है

क्या चिड़ियाघर भी बंद है

होती जहां पे शैतानियां वो

सिनेमाघर भी बंद है। 


बन्द हैं गर ये सभी

देश पतन की ओर जाएगा

फिर नेता होंगे बहरे 

और कानून अंधा बन रह जाएगा।


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