मैं क्या लिखूं
मैं क्या लिखूं
मरी हुई इंसानियत पर
फैली इस हैवानियत पर
हिन्दू मुस्लिम के अहंकारों पर
या देश विरोधी नारों पर
माँ की रोती आँखों पर
जलती चिता की राखों पर
सियासत के वाह वाह पर
उस बच्ची के दर्द की कराह पर
मैं क्या लिखूं
गूंगे बहरे शासन पर
या खूनी सिंहासन पर
उस बच्ची के जले शरीर पर
या अपने देश के मीर पर
रोती उन आवाज़ों पर
दफनाए कुछ राज़ों पर
जलती उसकी चिता पर
या टूटे उसके पिता पर
मैं क्या लिखूं
उसके वीरान घर पर
अधूरे उसके सफ़र पर
टूटे उसके सपनों पर
हारे उसके अपनों पर
माँ के सूने आंचल पर
मुरझाए उस बादल पर
आंगन की किलकारी पर
और उसकी गुड़िया प्यारी पर
मैं क्या लिखूं
जलती उसकी देह पर
सबसे उसके नेह पर
मानवता के मिटे अंश पर
ख़ुद अपने विध्वंस पर
जलते हुए चिराग़ पर
या बुझी हुई आग पर
उसकी मृत्यु के जीत पर
उसके सच्चे मीत पर
मैं क्या लिखूं ।