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मेरा घर अब गाँव हो गया

मेरा घर अब गाँव हो गया

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एक परंपरा थी जो अब ख़त्म सी हो गयी है

कुछ ख़ुशियाँ थी जो अब दफ़न सी हो गयी है

एक हंसी गूंजती थी आंगन में, वीरान हो गयी अब

एहसासों की एक कड़ी थी, गुमनाम हो गयी अब

एक मजबूत कदम था अब कट के सौ पाँव हो गया

मेरा घर अब गाँव हो गया।


एक आवाज़ पर सब एक दूसरे के साथ होते थे

किसी को दुःख अगर हो तो सब साथ रोते थे

दीवाली में माटी के घरौंदे भी बनाये थे

दुःख था या रहीं ख़ुशियाँ मिलकर हम मनाए थे

किसी का हालात अब किसी का दाँव हो गया

मेरा घर अब गाँव हो गया।


धूप भी पहले हमें अच्छी तो लगती थी

बरखा में आंगन की माटी खूब सजती थी

न जाने भूले कैसे सब सर पर हाथ वो जो था

मेले में हाथों का एक साथ वो जो था

अमिट काले बादलों का अब छांव हो गया

मेरा घर अब गाँव हो गया।


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