होली तो बीत गई
होली तो बीत गई
सुबह से रंगों को आसमान में उड़ते देखा मैंने
वहीं बीच में एक टूटी झोपड़ी भी
जहां जमीन पर रंग पड़े दिख रहे थे
वहीं उन पर सुखी खोपड़ी भी ।
हर कोई प्यार के रंगों में रंगा था
मैं कमरे की बालकनी से यह सब कुछ देखा
हंसी ठहाके रंग गुलाल और न जाने क्या कुछ
इस बीच उसने अपनी उंगली से अपने आंसू फेंका।
वह कोई व्यक्ति नहीं भाव था
सबको रंग के ख़ुद बेरंग सा रह गया
सबको हंसता खेलता देख चुप रहा
इस बार भी वह हज़ारों ठोकरें सह गया ।
ज़मीन पर पड़े उदास बेजान रंग
इनको देखकर मन को कुछ झगझोर लें
प्यार से भरी होली तो बीत गयी
चलो अब इन रंगों को बटोर लें ।