सफ़र
सफ़र
एक राह एक राही और कुछ सपने
यही तो एक सफ़र की कहानी है
आज यहाँ कल वहाँ कल न जाने कहाँ
चलता है तभी साफ़ बहता पानी है।
मुश्किलें दरमियाँ सफ़र के रहती हैं
कभी हार जाएं तो कोई हैरानी नहीं
भले लाख बार डूबे नाव अपनी
किसी और के पतवार से तैरानी नहीं।
सफ़र का था मैं सफ़र का रहा
बिना चले कोई ज़िंदगानी नहीं है
कदमों की आहट देख दूसरे की
चाल हमें अपनी आजमानी नहीं है।
सफ़र में जीत ही कहाँ मिलती है ?
बिन हार जीत भी रूहानी नहीं है
थक हार कर अगर चार पग भी चले
ज़बरन है राह सुहानी नहीं है।
जीत भी गए अगर आज हम कहीं
जीत हमको अपनी जतानी नहीं है
राह में पड़ाव बहुत होंगे ये पथिक
मंजिलें उन्हें यूँ बनानी नहीं हैं।
कभी तुम गिरो कभी उठ जाओ
गिरने से हिम्मत डगमगानी नहीं है
बेशक हो अंधेरा या भय भी लगे
जुगनुओं से राह जगमगानी नहीं है।
वही राह वही राही और सपने भी वही
लेकिन राह वही फ़िर दोहरानी नहीं है
रोज़ एक ही राह चलते गए
सफ़लता की फ़िर कहानी नहीं है।