सफ़र 2
सफ़र 2
अजीबोगरीब उलझनों के बीच एक नई राह
लो एक सफ़र और शुरू हो गया
कहाँ जाना था और कहाँ को चल दिये
कुछ राह भी अब धुंधली सी दिख रही है
अंधेरों ने अंधेरों से बगावत शुरू कर दी
उजाली नई अब कहानी लिख रही है ।
कुछ चार ही कदम अभी तो दूर आये थे
उम्मीदों की दिखी कुछ उजाली थी
न जाने कहाँ वो भीड़ गुम गयी
कल थी भीड़ राह आज खाली थी ।
न जाने कितनी बातें उस अंधेरे में
मेरी कुछ उलझी कहानी को टटोल रही थीं
मैं तो चुप चाप उन्हें वहीं दबा देता
पर वो उठ उठ का वही बोल रही थीं ।
हल्की रौशनी में ठंड की रजाई में
यह सफ़र कुछ पहचाना लग रहा था
उम्मीदें भी कुछ क्षण विश्राम करती हैं
उन क्षणों में भी मैं जग रहा था ।
इतना भी मुश्किल नहीं सफ़र मेरा
बस यही की मैं अब अकेला हूँ
तो क्या अगर कहीं हार जाऊंगा
आहिस्ता बढ़ते कदमों का मेला हूँ ।
सफ़र में दो चार ठोकरें ही सही
उम्मीदें कम नहीं साहस बढ़ाती हैं
फ़र्श से अर्श के इस उतार में
वही हाथ अपना देखर चढ़ाती हैं ।
निश्चित ही एक सफ़र का एक अंत है
मगर आरंभ का कोई किस्सा नहीं
जीवन में गिरना उठना चलना ठीक मगर
थककर बैठने का कोई हिस्सा नहीं ।
उजालों के चलने का अंधेरा अब गुरु हो गया
लो एक सफ़र और शुरू हो गया ।