मेरी कविता
मेरी कविता
मेरी कविता अनंत दूरी तय करती है
कभी नदी, पहाड़ या झरनों से गुजरती है
सबके दुख, दर्द और परेशानियों को खुद में भरती है
मेरी कविता सूरज ढलने के बाद भी उजाला करती है।
कभी सुबह कभी शाम कभी बरसात होती है
चाँदनी रात में तारों की बारात होती है
अकेले चलने वालों के हरदम साथ होती है
चुप रहकर भी हज़ारों बात होती है।
अनंत संवेदनाओं से भरा सैलाब है
विस्तृत है सागर और संकीर्ण तालाब है
दबी कुचली आवाजों का एक विलाप है
हारकर रुक जाने के सख़्त खिलाफ़ है।
मन में छुपा कोई गहरा घाव है
तपती धूप में सुखद छाँव है
हली किसानी हरियाली से भरा गाँव है
पढ़ लो तो पंक्ति समझो तो गहरा घाव है।
नकारात्मकता पर सकारात्मक प्रहार है
कभी हार पर जीत कभी जीत पर हार है
कभी कोई उधेड़बुन कभी कोई सार है
मस्त रुको, चलो, चलते रहो कहती बार बार है।
अनिश्चितता पर निश्चितता का एक संकल्प है
हर बंद रास्तों का एक नया विकल्प है
कहीं मुरझाई झाड़ी कहीं वृक्ष कल्प है
कभी कहीं प्रचुर तो कभी कहीं अल्प है।
थके हारों को कुछ क्षण का विश्राम है
नव युग निर्माण को अनंत आयाम है
बुझ चुके दीपक में भी संभावना तमाम है
पर पथिक और उसके पथ को प्रणाम है।